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अंहिसा और प्यार इन्सान तो क्या, भगवान को भी झुका सकता हैः राष्ट्रीय मुख्य सचिव NCCHWO

 



आज "राष्ट्रपिता" मोहनदास करमचंद गांधी की 154वीं जयंती है, हम भारत मां के उस सपूत को नमन करते हैं, जिन्हें भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। हम उन्हें प्यार से 'बापू' भी कहते हैं। उन्होंने अपने शक्तिशाली प्रण 'अहिंसा' का उपयोग करके भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके सम्मान में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून, 2007 को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।


गांधी जयंती हमें उनके शांति और अहिंसा के सिद्धांतों की याद दिलाती है। प्रत्येक वर्ष उनकी जयंती पर, हमें भारत को स्वतंत्र कराने के लिए गांधीजी के प्रयासों की याद दिलाई जाती है। उन्होंने एक लंबा संघर्ष सहा ताकि भारत के लोग एक स्वतंत्र राष्ट्र में रह सकें। उनका सत्य और अहिंसा में दृढ़ विश्वास था।


गांधीजी भी एक महान नेता थे, उन्होंने भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खादी की धोती पहनी थी। उन्होंने लोगों को खुद पर भरोसा रखने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसमें उन्होंने भारतीयों से अंग्रेजों के साथ सहयोग न करने और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने का आग्रह किया। गांधीजी ने अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया।   1930 में उन्होंने नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार का विरोध करने के लिए 400 किलोमीटर पैदल चलकर दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह शुरू किया। भारत छोड़ो आंदोलन अंग्रेजों को भारत छोड़ने का आह्वान था।

हम सबको भी गांधी जी के बताये रास्ते पर चलना होगा, मतलब यह कि अंहिसा से दोनों पक्षों को नुक्सान होता है और अंहिसा से बिना रक्त बहाये बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है। इसलिये आओ हम सब मिलकर समाज और देश को एक करने के लिये परिश्रम करें और अपने देश को ऊंचाईयों की बुलंदी तक पहुंचाये।।

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