सबसे पहले मैं अपने देशवासियों एवं समस्त पदाधिकारियों को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
दशहरा शब्द की उत्पत्ति- दशहरा या दसेरा शब्द 'दश'(दस) एवं 'अहन्' से बना है। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है।
भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का ठिकाना हमें नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। तो कुछ लोगों के मत के अनुसार यह रण यात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाते हैं, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि सहेज कर में रखे जाने वाले हो जाते हैं।
इस उत्सव का संबंध नवरात्रि से भी है क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह उत्सव होता है और इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख मिलता है। दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था।
राम और रावण का युद्ध- रावण भगवान राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। राम की विजय के प्रतीक स्वरूप इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है।
रामलीला और रावण वध- इस समय रामलीला का भी आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा, शस्त्र पूजन, हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। रामलीला में जगह-जगह रावण वध का प्रदर्शन होता है।
शक्ति के प्रतीक का उत्सव- शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्रि प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। इस मौके पर लोग नवरात्रि के नौ दिन जगदंबा के अलग-अलग रूपों की उपासना करके शक्तिशाली बने रहने की कामना करते हैं। भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। दशहरे का उत्सव भी शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला उत्सव है।
हमारे पुराणों के अनुसार यह भी मान्यता है कि रावण महाशक्ति वान, महाज्ञानी होने के साथ चरित्रवान भी था, उसने माता सीता की इच्छा के विरूद्ध उनको हाथ तक नहीं लगाया था, इसलिए हमे भी चरित्र वान होना चाहिए, हमे अपने अंदर के सभी विकारों को नष्ट कर देना चाहिए। यह त्योहार हमे खासकर यही सिखाता है, की अगर हम अपने विकारों को काबू में नहीं रख सकते तो हमारा और हमारे परिवार और देश का नाश तय है। तो आओ हम सब मिलकर यह प्रतिज्ञा लें की न गलत करेंगे और न अपने आस पास गलत और अन्याय होने देंगे।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि हम दशहरे को रावण कुंभकर्ण और मेघनाद के पूतले तो जलाते हैं, मगर अपने अंदर के विकारों को क्यों नहीं जलाते, आओ इस बार हम रावण दहन के साथ साथ अपने अंदर के विकारों का भी दहन करेंगे।
एक बार फिर मैं अपने देशवासियों एवं समस्त पदाधिकारियों को दशहरे की शुभकामनाएं देता हूं।।